लॉकडाउन : दिहाड़ी मजदूर और चलते-फिरते जड़ी-बूटी बेंचने वाले आदिवासी बेहाल, अगर मदद न मिली तो इन गरीबों को भूख मार डालेगी

0
1061

* खत्म हुई जमा पूँजी सिर्फ एक-दो दिन का राशन ही बचा

* जरुरी वस्तुओं के आभाव से जूझ रहे आदिवासियों ने बताई अपनी मुश्किलें

* जिले की अजयगढ़ तहसील अंतर्गत पिष्टा में सड़क किनारे है इनका डेरा

* पन्ना में नगर पालिका के बाहर खाद्यान्न के लिए महिलाओं ने किया हंगामा

मुस्तक़ीम खान, रोहित रैकवार- अजयगढ़/पन्ना।(www.radarnews.in) कोरोना वायरस संक्रमण के कहर को रोकने के लिए अचानक लागू किये गए 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन के चलते दिहाड़ी पर जीवन-यापन करने वाले गरीब, श्रमिक, आदिवासी एवं कमजोर वर्गों की हालत अब बिगड़ने लगी है। सरकारी मदद से वंचित इन परिवारों को खाने के लाले पड़ रहे हैं। लकड़ी बेंचकर या मजदूरी करके गुजर-बसर करने वाले गरीबों ने कोरोना के खिलाफ जारी जंग में किसी तरह अभावों के बीच लॉकडाउन का आधा समय तो काट लिया लेकिन शीघ्र मदद न मिली तो कई गरीब परिवारों को कोरोना से भी खतरनाक भूख के वायरस से जूझना पड़ सकता है। कुछ इसी तरह के हालात जिले की अजयगढ़ तहसील अंतर्गत ग्राम पिष्टा में अन्तर्राज्जीय राजमार्ग किनारे डेरा डालकर रहे जड़ी-बूटी बेंचने वाले आदिवासी परिवारों के हैं।
विमुक्त-घुमक्कड़ जनजातियों में शामिल जड़ी-बूटी विक्रेताओं की यह हालत इसलिए भी है, क्योंकि वे चलते-फिरते एक शहर से दूसरे शहर में दुर्लभ जंगली जड़ी-बूटियाँ बेंचकर अपना जीवन यापन करते हैं। इनके पास न तो किसी भी श्रेणी का राशन कार्ड है और ना ही लॉकडाउन घोषित होने के बाद अब तक कोई मदद मिली है। इनके पास जो भी थोड़ा बहुत राशन उपलब्ध था वह अब पूरी तरह ख़त्म होने को है, कई जरूरी वस्तुओं का तो पहले से ही अभाव बना है। नाम मात्र की जो जमा पूँजी थी वह भी खर्च हो चुकी है इसलिए दिन-प्रतिदिन आदिवासी परिवारों की मुश्किलें और चुनौतियाँ बढ़ती जा रहीं हैं।
जड़ी-बूटी विक्रेता आदिवासी परिवार के सदस्य एवं बच्चे।
लॉकडाउन के कारण आवाजाही पर रोक होने और कामधंधा पूरी तरह ठप्प होने से इन्हें अब फांकें करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। ख़त्म होते राशन के साथ गहराती चिंता के बीच जड़ी-बूटी विक्रेता आदिवासियों ने अपनी तंगहाली बयां करते हुए बताया कि अगर जल्द मदद न मिली तो दाने-दाने को मोहताज हो जायेंगे। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ माह से पूरी दुनिया वैश्विक महामारी घोषित नोवल कोरोना वायरस(कोविड-19) संक्रमण के तेजी से बढ़ते खतरे को लेकर भयभीत है। कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए वर्तमान में दुनिया भर के कई देशों में टोटल लॉकडाउन चल रहा है। जिससे लोग अपने घरों में ही कैद हैं। हमारे यहाँ अचानक घोषित किये गए 21 दिन के लॉकडाउन के चलते गरीब परिवारों को कोरोना वायरस के साथ-साथ अब भूख से भी जंग लड़नी पड़ रही है।

परिवार में आधा सैंकड़ा से अधिक सदस्य

अजयगढ़ के पिष्टा ग्राम में डेरा डाले आदिवासी जड़ी-बूटी विक्रेता परिवार कबीले की तर्ज पर एक साथ रह रहे हैं। इनके परिवार में तकरीबन आधा सैंकड़ा से अधिक सदस्य हैं, जिनमें बच्चे और बूढ़े भी शामिल हैं। लॉकडाउन के दौरान जरूरी राशन सामग्री समाप्त होने से इनके बच्चे और वृद्धों के लिए परेशानी कहीं अधिक है। इनका कहना है कि हम लोग खाने-पीने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। हमारे पास अब तक सरकार की कोई मदद सामने नहीं आई। इन हालात में हम करें तो आखिर क्या करें। एक तरफ़ हम कहीं निकल भी नहीं सकते, दूसरे तरफ हमारे छोटे-छोटे बच्चे बूढ़े माँ-बाप व पूरा कबीला खाने-पीने के लिए मोहताज है, जो राशन पानी था वो धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। अगर लॉकडाउन आगे बढ़ा तो हम क्या करेंगे। रसोई गैस ख़त्म हो गई है जिसे भरवाने के लिए रूपये नहीं है। इसलिए कई दिनों से जंगल से लकड़ी लाकर किसी तरह काम चला रहे हैं।
रसोई गैस ख़त्म होने के कारण खाना पकाने के लिए जंगल से लकड़ी लेकर आते आदिवासी।
आदिवासियों ने पत्रकारों से कहा कि आप लोग हमारी आवाज सरकार और अफसरों तक पहुंचाएं। ताकि जरूरी मदद मिल सके। इन लोगों ने बताया कि पिष्टा के सरपंच और सचिव और शासकीय उचित मूल्य दुकान के सैल्समैन से राशन मांगने पर उन्हें कथित तौर पर दुत्कार कर भगा दिया गया। प्रशासनिक अधिकारियों एवं क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों को सूचना देने के बावजूद इन परिवारों को खाद्यान्न नहीं मिल सका। इसके अलावा अजयगढ़ जनपद क्षेत्र की अंतर्राज्यीय सीमा के पास अपने दुधमुंहे बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे डेरा डालकर रह रहे हंसिया-कुल्हाड़ी बनाने वाले लोहगड़िया समुदाय के भी लगभग दर्जन भर परिवार खाद्यान की समस्या से जूझ रहे हैं।

नपा के सामने महिलाओं ने किया हंगामा

जिला मुख्यालय पन्ना में रहने वाले कई गरीब मजदूर परिवार भी खाद्यान्न संकट से जूझ रहे हैं। लॉकडाउन के चलते काम-धंधा ठप्प होने से रोज कमाने-खाने वालों में भी उन परिवारों के लिए समस्या ज्यादा गंभीर है जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। ऐसे ही परिवारों की कुछ महिलाओं ने रविवार 5 अप्रैल को पन्ना नगर पालिका कार्यालय के सामने जमकर नारेबाजी की। सीएमओ को अपनी परेशानी बताने आईं महिलायें जब नपा कार्यालय पहुंचीं तो वहाँ गेट में अंदर से ताला लगा मिलने पर गरीब महिलायें काफी भड़क उठीं। नारेबाजी करते हुए इनके द्वारा शासन-प्रशासन के लिए काफी भला-बुरा कहा गया।
इन महिलाओं का कहना है कि कलेक्टर के आदेश के बाद भी गरीब-जरूरतमंदों एवं अन्य पात्र परिवारों को निः शुल्क राशन नहीं मिल रहा है। जबकि बिना राशन कार्ड वाले मजदूर परिवारों एवं बाहरी मजदूर परिवारों को उचित मूल्य दुकानों से प्रति व्यक्ति 4 किलो गेहूं,1 किलो चावल एवं अधिकतम हर परिवार को 16 किलो गेहूं और 4 किलो चावल देने आदेश जारी किया गया है। लेकिन खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों की मौखिक मनाही चलते सेल्समैन बिना राशन कार्ड वाले बाहरी गरीब श्रमिक परिवारों को खाद्यान नहीं दे रहे हैं। जिससे प्रभावित परिवार भूखों मरने की कगार पर पहुंच चुके हैं। जिला प्रशासन को चाहिए कि खाद्यान्न संकट से जूझ रहे परिवारों को तत्परता से मदद पहुंचाने के लिए मैदानी अमले को आवश्यक निर्देश दिए जायें।