“मिढ़ासन नदी पुनर्जीवन परियोजना” बनी मजाक | सदानीरा बनाना था पर गर्मी के मौसम में सूख जाती है नदी

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इस साल जनवरी माह से पूरी तरह सूखी पड़ी मिढ़ासन नदी के पुनर्जीवन कार्य की हकीकत को बयां करता दृश्य।

* न सिंचाई क्षमता बढ़ी और न ही प्रवाह क्षेत्र में आई हरियाली

* अफसरों के लिए चारागाह साबित हुई महत्वकांक्षी योजना

* 20 करोड़ खर्च करने के बाद भी धरातल पर नहीं बदले हालात

शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) भारत देश में नदियों को माँ कहा जाता है और नियमित पूजा-अर्चना करने से लेकर इनके पानी में विशेष त्योहारों पर आस्था की डुबकी लगाई जाती है। नदी के अस्तित्व को हमने जीवित मनुष्य की तरह स्वीकार कर कई अधिकार दिए भी दिए हैं। इतना सबकुछ होने के बाद भी देश की अधिकांश नदियों की हालत बद से बद्तर क्यों होती जा रही है यह सवाल महत्पूर्ण है। जीवनदायिनी नदियों की सफाई, संरक्षण तथा इनके पुनर्जीवन की योजनाओं पर पिछले कई सालों से देश भर में सरकारी खजाने की राशि पानी की तरह बहाई जा रही है लेकिन धरातल आपेक्षित परिणाम कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की मिढ़ासन नदी इसका एक नमूना मात्र है। मिढ़ासन नदी के पुनर्जीवन के नाम पर जिले के साथ क्रूर मजाक किया गया है। जलाभिषेक अभियान के तहत् इस नदी को सदानीरा बनाने वर्ष 2010 से लेकर अब तक 20 करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके है, इसके बावजूद मिढ़ासन नदी गर्मी के मौसम में हर साल सूख जाती है। यह हाल उस नदी का है जिसके पुनर्जीवित कर सदानीरा बनाने का संकल्प खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने लिया था। कारण चाहे जो भी हो पर जमीनी हकीकत यही है कि, इतनी बड़ी राशि के खर्च के बावजूद मिढ़ासन नदी पुनर्जीवित नहीं हो सकी। इससे परियोजना के क्रियान्वयन पर गम्भीर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है। क्योंकि इस महत्वकांक्षी योजना के क्रियान्वयन के समय जो लाभ गिनाये जा रहे थे वे भी यर्थाथ के धरातल पर कहीं नजर नहीं आ रहे है।
चिंताजनक पहलू यह है कि मिढ़ासन के मामले में प्रशासन और जनमानस में संवेदनाओं का सूखा व्याप्त है। पन्ना जिले में करीब 3 वर्ष पूर्व धरमसागर तालाब के गहरीकरण के समय प्राचीन जल स्त्रोत के संरक्षण-संर्वधन के पुनीत कार्य में सहभागिता को लेकर जन भावनाओं का जो ऐतिहासिक ज्वार देखने को मिला वह मिढ़ासन में सरकारी खजाने की बर्बादी की बात आने तक शायद भाटे में तब्दील हो गया है। इसलिए मिढ़ासन के मामले में सब खामोशी ओढ़े हुए है। सबसे ज्यादा हैरान उन जिम्मेदार लोगों की चुप्पी करती है जिन्हें इस मामले की पूरी जानकारी है। कितनी बिडम्बनापूर्ण बात है कि एक ओर धरमसागर तालाब के लिए करीब 3 माह तक जन सहयोग से रात-दिन राशि एकत्र की गई और वर्तमान में कई स्थानों पर राशि के आभाव में श्रमदान से तालाब गहरीकरण के कार्य चल रहे हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ मिढ़ासन में एक झटके में ही 20 करोड़ रूपये बहा दिये गये, फिर भी हम खामोश बैठे हैं ?

कागजों तक सिमटे परिणाम

सपत्नीक नर्मदा नदी की आरती करते पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का फाइल फोटो।
मिढ़ासन नदी पुनर्जीवन कार्य का शुभारंभ करने के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़े जोर-शोर के साथ ऐलान करते हुए इस महत्वकांक्षी परियोजना के प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभ गिनाये थे। बताया गया था कि मिढ़ासन नदी को उसका मूल स्वरूप लौटाने के लिए कराये जाने वाले कार्यों से नदी के प्रवाह क्षेत्र के किसानों की ढ़ाई हजार हैक्टेयर से अधिक कृषि भूमि अतिरिक्त सिचिंत होगी। वृक्षारोपण और चारागाह विकास होने से क्षेत्र में हरियाली आयेगी। इन बड़े-बड़े दावों की हकीकत यह है कि न तो सिंचाई क्षमता में कोई वृद्धि हुई और न ही प्रवाह क्षेत्र में हरियाली आई है। भू-जल स्तर दो से तीन मीटर तक बढ़ने के बजाय क्षेत्र में जमीन का पानी लगातार तेजी पाताल की ओर खिसक रहा है। भू-जल सर्वेक्षण के आंकड़े इस बात का प्रमाण है। इस परियोजना के तहत चारागाह विकास से अंचल के पशुओं के लिए चारे की सुलभ उपलब्धता का ढ़ोल पीटा गया था। इसकी वास्तविकता यह है कि मिढ़ासन के प्रवाह क्षेत्र के पशुओं को तो चारा मिला नहीं पर यह योजना प्रशासन और शासन में बैठे लोगों के लिए बेहतरीन चारागाह साबित हुई है। बारिश के महीनों को छोड़ दे तो मिढ़ासन के किनारे दूर-दूर तक हरियाली का नामो-निशान तक नहीं दिखता है।

गर्मी में नजर आती है हकीकत

मिढ़ासन नदी के हर साल सूखने से पुनर्जीवन के नाम पर कराये गये कार्यों की उपयोगिता पर उठ रहे हैं सवाल।
मिढ़ासन नदी पुनर्जीवन योजना के तहत् कराये गये कार्यों में व्यापक पैमाने पर अनियमित्तायें और फर्जीवाड़ा हुआ है। यही वजह है कि 26 करोड़ की योजना पर 20 करोड़ खर्च होने के बाद भी परिणाम शून्य है। इसकी हकीकत गर्मी के मौसम में मार्च के महीने में ही दिखने लगती है। गौरतलब है कि जबसे मिढ़ासन पुनर्जीवन का कार्य प्रारंभ हुआ तब से लेकर अब तक एक भी वर्ष ऐसा नहीं रहा कि जब मिढ़ासन नदी पूरी तरह सूखी न हो। किसी साल वर्षा यदि सामान्य होती है तो मिढ़ासन नदी अप्रैल-मई महीने में सूख जाती है यदि बारिश कम हुई तो जनवरी-फरवरी मेंं ही नदी की तलछट मैदान में तब्दील हो जाती है और उससे धूल उड़ने लगती है।

योजना से हुए प्रत्यक्ष-परोक्ष लाभ जो कहीं नजर नहीं आते

           प्रत्यक्ष लाभ

       परोक्ष लाभ

अतिरिक्त सिंचाई क्षमता वृद्धि – 25422 हैक्टेयर
भूजल संर्वधन से मिट्टी के नमी में बढ़ोत्तरी
वृक्षारोपण – 1505 हैक्टेयर
 पर्यावरण सुधार
चारागाह विकास – 129 हैक्टेयर
 पशुओं के लिये स्थायी पेयजल की उपलब्धता
जलाऊ लकड़ी की उपलब्धता में वृद्धि
10-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि
कपिलधारा योजना से 50 हितग्राहियों को लाभ
प्रवाह क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचाई क्षमता निर्मित होना
भू-जल स्तर में 2-3 मीटर जल स्तर में वृद्धि
भूमि कटाव का रूकना
निस्तार हेतु अतिरिक्त जल की उपलब्धता
बिगड़े वनों में सुधार
जॉब कार्डधारियों को रोजगार की उपलब्धता
प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
मेड़ बंधान से लगभग 450 हितग्राहियों को लाभ
फल सब्जियों के उत्पादन में वृद्धि