सफ़र में जान गंवाने वाले प्रवासी श्रमिकों की याद में मनाया शोक दिवस, मौन धारण कर दी गई श्रद्धांजली

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* प्रत्येक मजदूर को मिले मनरेगा में 200 दिन का काम – यूसुफ बेग

शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर मार्च माह के अंतिम सप्ताह में अचानक पहले लॉकडाउन की घोषणा के बाद देश के हजारों प्रवासी श्रमिकों को अपने घरों के लिए पैदल ही चलना पड़ा क्योंकि बस और रेल सेवाएं पूरी तरह बंद हो चुकी थीं। लॉकडाउन के कारण मुश्किल में फंसे और परेशान अधिकाँश प्रवासी श्रमिकों के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों की अदूरदर्शिता और संवेदनहीनता की वजह से घर वापसी का सफर असहनीय कष्टदायक साबित हुआ। भूखे-प्यासे और सिर पर बोझ रखकर पैदल चले महिला, बच्चों और कई पुरुष मजदूरों को इस सफर में असमय ही अपनी जान गंवानी पड़ी है। इन शहीदों को श्रद्धांजली देने और इनकी समस्याओं की ओर सरकारों का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए रोजी-रोटी अधिकार अभियान के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर देश भर में आज शोक दिवस मनाया गया।
इसी कड़ी में सोमवार 1 जून को पन्ना जिला मुख्यालय सहित गांवों में पत्थर खदान मजदूर श्रमिक सहकारी समिति के अध्यक्ष एवं सामाजिक कार्यकर्ता यूसुफ बेग के आह्वान पर शारीरिक दूरी बनाये रखते हुए एवं शासन के नियमों का पालन करते हुए दो मिनिट का मौन धारण कर अपने शहीद मजदूरों को श्रद्धांजली दी गई। इसके पश्चात काली पट्टी बांधकर बेवश और लाचार श्रमिकों की समस्याओं के निराकरण तथा उनके हितों के संरक्षण के लिए काली पट्टी बांधकर सांकेतिक प्रदर्शन किया गया।

शहीद हुए 667 प्रवासी श्रमिक

पत्थर खदान श्रमिक मजदूर सहकारी समिति के अध्यक्ष यूसुफ बेग ने प्रेस विज्ञप्ती जारी कर कहा है की पिछले दो महीनों में पूरे देश में कोरोना कोविड 19 के कारण लॉकडाउन ने देश भर के लोगों को खासकर गरीब, बेघर हाशिये पर खड़े लोगों एवं प्रवासी मजदूरों को अभूतपूर्व संकट में डाल दिया है । 22 मई 2020 तक देश में लॉकडाउन के कारण पैदल चलते भूखे-प्यासे परेशान हाल 667 लोगों की मौत हुई है। जिसका कारण कोविड संक्रमण(कोरोना) नहीं है बल्कि उनकी मौत सड़क दुर्घटना, भूख और लॉकडाउन के चलते पैदा हुई मुश्किलों की वजह से हुई है। ऐसे में मजदूरों की हकीकत सामने रखकर सरकार को आईना दिखाने का काम काली पट्टी बाँध कर आज मजदूरों ने किया है। श्री बेग ने कहा कि इस लॉकडाउन के कारण सिर्फ लोगों की मौतें ही नहीं हुई बल्कि उनकी आजीविका, आकांक्षाओं का भी दमन किया गया है। जिसकी हम सभी मजदूर निंदा करते हैं।

आपदाकाल में श्रमिक परिवारों को मिले राशन

इनके द्वारा मांग की गई है कि कोरोना आपदाकाल में हर गरीब व्यक्ति को सार्वजनिक वितरण प्रणाली से 10 किलो अनाज, 1.5 किलो दाल, 800 ग्राम तेल हर महीने दिया जाए, आंगनवाडी और स्कूल में मध्यान भोजन के माध्यम से गरम पका भोजन, प्रवासी मजदूरों एवं देश के अन्य भाग फंसे हुए लोगों को सुरक्षित जाने की मुफ्त व्यवस्था, मनरेगा तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार एवं वापस आये मजदूरों को 200 दिन का रोजगार दिया जाए। श्रमिक नेता युसूफ बेग ने सोशल मीडिया के माध्यम से इन मांगों को देश के प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री तक पहुँचाया है जिससे लॉकडाउन के कारण संकट में आये मजदूरों को भरण-पोषण का सहारा मिल सके और वह पुनः सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार हो सकें।