सच बोलने की सजा : रेंजर को काष्ठागार के प्रभार से हटाकर नोटिस थमाया, वनरक्षक को निलंबित कर सौ किलोमीटर दूर स्थित मुख्यालय भेजा

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फाइल फोटो।

* काष्ठागार पन्ना से 33 वनकर्मियों के गायब होने का मामला

* मीडिया में ख़बरें आने से वन विभाग के अफसरों की मनमानी हुई उजागर

* नाराज डीएफओ ने दिखाई अफशरशाही की हनक, निर्दोष कर्मचारियों पर की कार्रवाई

शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) सच बोलना किसी भी दौर में सहज नहीं रहा। इतिहास गवाह है, सच बोलने या फिर उसे वास्तविक रूप उजागर करने वाले को तलवार की धार पर चलना पड़ा है। अर्थात ऐसा करने वाले व्यक्ति को कई तरह के जोखिम और क्षति उठानी पड़ती है। कुछ ऐसा ही दक्षिण वन मंडल पन्ना के रेंजर राम सिंह पटेल और वनकर्मी राजेश सोनी के साथ भी हुआ है। इन दोनों के विरुद्ध दक्षिण वन मंडल पन्ना की डीएफओ मीना कुमारी मिश्रा के द्वारा की गई कार्रवाई सुर्ख़ियों में बनीं है। दरअसल, दक्षिण वन मंडल पन्ना के अंतर्गत आने वाले काष्ठागार डिपो के प्रभारी अधिकारी रहते हुए राम सिंह पटेल ने कुछ समय पूर्व डीएफओ को पत्र लिखकर अवगत कराया था कि काष्ठागार डिपो में कागजों पर 42 कर्मचारी पदस्थ हैं लेकिन मौके पर सिर्फ 9 कर्मचारी ही कार्य कर रहे हैं। अन्य 33 कर्मचारी मनमाने तरीके से गायब रहते हुए हर महीने पगार ले रहे है। पत्र में काष्ठागार की वस्तुस्थिति को हवाला देते हुए गायब रहने वाले 33 कर्मचारियों को अनयंत्र पदस्थ करने की सिफारिश की गई थी।
वनरक्षक राजेश सोनी का निलंबन आदेश।
सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुए काष्ठागार अधिकारी के इस पत्र से वन विभाग की न सिर्फ जमकर किरकिरी हो रही है बल्कि इस खुलासे के बाद विभाग के कथित जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न चिन्ह भी लगा है। हैरान करने वाले इस मामले के सामने आने के बाद कुछ मीडिया कर्मियों ने विस्तृत खबर कवर करते हुए काष्ठागार डिपो पन्ना के कार्यालय प्रभारी एवं वनरक्षक राजेश सोनी से सम्पर्क कर वहां नियमित रूप से काम करने वाले कर्मचारियों की जानकारी चाही गई। कार्यालय प्रभारी ने बगैर किसी औपचरिकता के वास्तविक जानकारी मीडिया को उपलब्ध करा दी। फिर क्या था वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा को पूरी तरह नजरअंदाज कर बड़ी तादाद में चहेते मैदानी वनकर्मियों की काष्ठागार डिपो में पदस्थापना के बहाने उनसे अपनी सुविधानुसार कार्यालयों और शासकीय आवासों में काम कराने से जुड़ीं ख़बरें मीडिया में आने लगीं।
अपनी कारगुजारियों के उजागर होने से नाराज डीएफओ ने अफसरशाही की सनक और हनक दिखाते हुए आनन-फानन में सलेहा रेंजर राम सिंह पटेल से काष्ठागार का अतिरिक्त प्रभार छीनते हुए उन्हें कारण बताओ नोटिस थमा दिया। वहीं काष्ठागार डिपो पन्ना के कार्यालय प्रभारी एवं वनरक्षक राजेश सोनी को मीडिया को जानकारी देने तथा विभागीय गोपनीयता भंग कर कर्तव्य के प्रति ईमानदार न रहने के आरोप लगाते हुए 26 नवंबर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। डीएफओ ने इस मामले में अपने मातहतों पर जिस तरह से कार्रवाई की है उससे साफ़ जाहिर है कि रेंजर और वनरक्षक दोनों को कोप का भाजन बनाया गया है। मजेदार बात तो यह है कि इनके खिलाफ कार्रवाई को लेकर तो तत्परता दिखाई गई लेकिन वन विभाग के शीर्ष अफसरों के निर्देशों की अवहेलना कर अटैच किए गए 33 मैदानी वनकर्मियों को रिलीव कर अब तक जंगल नहीं भेजा गया। डीएफओ की इस कार्रवाई को सच को उजागर करने की सजा के तौर पर देखा जा रहा है। पन्ना जिले के वन विभाग में इसके खिलाफ व्यापक असंतोष और विरोध के स्वर बुलंद हो रहे है।

मुख्यालय रैपुरा निर्धारित किया

डीएफओ मीना कुमारी मिश्रा द्वारा जारी वनरक्षक राजेश सोनी के निलंबन आदेश में, अप्राधिकृत रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को जानकारी देने तथा काष्ठागार पन्ना के हाजिरी रजिस्टर की छायाप्रति प्रदाय कर विभागीय गोपनीयता भंग कर कर्तव्य के प्रति संनिष्ठ ना रहने उल्लेख किया गया है। इसे मध्यप्रदेश सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 3 एवं 12 का उल्लंघन मानते हुए तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। इतना ही नहीं राजेश को कथिततौर पर प्रताड़ित करने की मंशा से उसका मुख्यालय पन्ना जिला मुख्यालय से 100 किलोमीटर दूर रैपुरा निर्धारित किया गया। इस सबसे जाहिर है कि पन्ना जिले के वन विभाग के बड़े अफसर किस मानसिकता के साथ निरंकुश होकर कार्य कर रहे है।

बड़े अफसरों पर नहीं होती कार्रवाई

फाइल फोटो।
इस प्रकरण में गौर करने वाली बात यह भी है कि सलेहा रेंजर राम सिंह पटेल के पास काष्ठागार का अतिरिक्त प्रभार था। उनकी अनुपस्थिति में वनरक्षक राजेश सोनी जोकि कार्यालय प्रभारी रहे यदि वे मीडियाकर्मियों के जानकारी मांगने पर उन्हें अपने कार्यालय में वास्तविक रूप से कार्यरत कर्मचारियों की संख्या बताते हैं तो क्या यह कृत्य इतना गंभीर है कि उन्हें निलंबित कर दिया जाए। उन्होंने किसी मीडियाकर्मियों को हाजिरी रजिस्टर की छायाप्रति भी नहीं दी यह अलग बात है कि कर्मचारियों के द्वारा रजिस्टर में हस्ताक्षर करते समय उसमें दर्ज कर्मचारियों के नाम और संख्या को कैमरों में कैद कर लिया। सवाल यह भी है कि कार्यालय का हाजिरी रजिस्टर क्या वाकई गोपनीय दस्तावेज है, जिसके फुटेज न्यूज़ चैनलों में आने पर एक कर्मचारी पर कार्यालय की गोपनीयता भंग कर कर्तव्य के प्रति संनिष्ट न रहने जैसा गंभीर आरोप लगाया गया। सवाल और भी हैं लेकिन जंगल विभाग में जिस तरह जंगल राज चल रहा है उसमें वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर जबाबदेही का घोर आभाव है। शायद यही वजह है कि पिछले दो वर्षों में दक्षिण वन मंडल पन्ना के अंतर्गत पाँच तेंदुओं और एक भालू का शिकार होने के मामलों में वनरक्षकों के अलावा किसी के भी खिलाफ कार्रवाई देखने को नहीं मिली।

रेंजर के पत्र से इसलिए मची थी खलबली

काष्ठागार अधिकारी पन्ना द्वारा डीएफओ को प्रेषित पत्र।
मालूम हो कि दक्षिण वन मंडल के वन परिक्षेत्र सलेहा के रेंजर राम सिंह पटेल के पास कुछ समय तक काष्ठगार डिपो पन्ना का अतिरिक्त प्रभार रहा है। इस दौरान उन्होंने डीएफओ को 15 नवंबर को लिखे गए अपने एक पत्र में बड़ी ही स्पष्टता के साथ काष्ठागार डिपो कार्यालय की हकीकत और तथ्यों को उजागर करते हुए बताया था कि काष्ठागार कार्यालय में कहने को तो 42 कर्मचारी/श्रमिक पदस्थ हैं जिनमें 2 वनपाल, 11 वनरक्षक, 24 स्थाई कर्मी, 1 ड्रायवर और 4 पार्ट टाइम श्रमिक हैं लेकिन यहां पर नियमित रूप से वहां सिर्फ 9 कर्मचारी ही सेवाएं दे रहे हैं। जिनमें राजेन्द्र पाल सिंह वनपाल, राजेश कुमार सोनी, विवेक कुमार चनपुरिया वनरक्षक, संतोष तिवारी स्थाई कर्मी और सुरक्षा श्रमिक हरि गौंड़, नत्थू गौंड़, सुरेश सोनी, छोटेलाल यादव शामिल है। महिला वनरक्षक सुनीता प्रजापति न्यायालय में बतौर मोहर्रर अपनी सेवाएं दे रहीं है।
रेंजर, राम सिंह पटेल।
शेष अनुपस्थित रहने वाले 33 कर्मचारी मनमाने ढंग से कार्य करने के आदी हो चुके हैं। उन्होंने पत्र में इस बात का विशेष तौर पर उल्लेख किया था कि पन्ना के काष्ठागार का आकार छोटा है और काष्ठ (लकड़ी) की आमद कम होने के साथ कार्यालय का कार्य भी अत्यंत ही सीमित है। ऐसे में काष्ठागार डिपो में 42 कर्मचारियों की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है। कर्मचारियों की इतनी संख्या क्षेत्रीय रेन्ज (वन परिक्षेत्र) में पदस्थ कर्मचारियों से भी ज्यादा है। काष्ठागार अधिकारी ने अनुपस्थित रहने वाले सभी 33 अतिरिक्त कर्मचारियों की आवश्यकता न होने का पत्र जिक्र करते हुए इन्हें अन्यंत्र पदस्थ करने की शिफारिश की थी।

वनों और वन्य जीवों की नहीं परवाह

करीब एक वर्ष पूर्व पवई रेंज अंतर्गत हुए तेंदुए के शिकार की घटना का जायजा लेतीं डीएफओ मीना कुमारी मिश्रा। फाइल फोटो
दक्षिण वन मंडल अंतर्गत काष्ठागार डिपो में तैनाती की आड़ में मैदानी वनकर्मियों से बंगलों में चाकरी-अर्दली और ऑफिस में बाबूगिरी ऐसे समय पर कराई जा रही है जबकि वन्य जीवों के शिकार, पत्थर के अवैध खनन एवं कटाई की हैरान करने वाली घटनाएं तेजी से बढ़ रहीं है। और दक्षिण वन मंडल के सभी छः वन परिक्षेत्रों में कई बीटें तथा सर्किल कर्मचारियों की कमी के कारण खाली पड़े है। परिणामस्वरूप कई वनकर्मियों को एक से अधिक बीटों का प्रभार संभालना पड़ रहा है। मैदानी अमले की कमी के कारण कार्य की अधिकता के दबाब में वनों की सुरक्षा और निगरानी की व्यवस्था धरातल पर दम तोड़ चुकी है। जिसका दुष्परिणाम यह है कि दक्षिण वन मंडल अंतर्गत पिछले दो वर्षों में पाँच तेंदुओं, एक भालू और एक मोर का शिकार हो चुका है। यहाँ के वन क्षेत्रों में कुछ समय से जहां शिकारी गिरोहों, वन्यजीवों के अंगों के तस्करों की सक्रियता तेजी से बढ़ी है वहीं पत्थर खनन माफिया और अतिक्रमणकारी भी बड़े पैमाने पर जंगल को लगातार क्षति पहुंचा रहे है।
इसके बाबजूद दक्षिण वन मंडल के बड़े अधिकारी जंगल और वन्य प्राणियों की सुरक्षा की घोर अनदेखी करते हुए मैदानी अमले को मुख्यालय में तैनात कर उनसे दीगर कार्य करा रहे है। लेकिन मैदानी वनकर्मियों को अटैच रखने की गलती की ओर ध्यान आकृष्ट कराने वाली काष्ठागार अधिकारी राम सिंह पटेल की चिट्ठी के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद व्यवस्था में सुधार करने के बजाए डीएफओ ने रेंजर राम सिंह पटेल से काष्ठागार का अतिरिक्त प्रभार वापस लेते हुए कल्दा के रेंजर एम. बी. मानिकपुरी को सौंपा दिया है। इतना ही नहीं डीएफओ ने उन्हें कारण बताओ नोटिस थमाते हुए एक तरह से यह साफ़ कर दिया है कि इस मामले में उनकी चिंता किन बातों पर है।

इनका कहना है –

“काष्ठागार अधिकारी और वनरक्षक के खिलाफ मैंने जो भी कार्रवाई की है वह पूर्णतः उचित है, इसे लेकर गलत बातें प्रचारित की जा रहीं है जबकि यह मामला कार्यालयीन गोपनीयता से जुड़ा है। काष्ठागार में पदस्थ कर्मचारी गायब नहीं है वे हमारे कार्यालय एवं शासकीय आवासों में काम कर रहे है, रेंजर ने पत्र में जिस तरह की भाषा लिखी उससे इन कर्मचारियों का मनोबल गिरा है। वनरक्षक मीडिया में वक्तव्य देने के लिए प्राधिकृत नहीं है। निश्चित ही फील्ड में स्टॉफ की कमी है लेकिन किसी भी अटैच वनकर्मी को हटाया नहीं गया है क्योंकि इससे मुख्यालय का कार्य प्रभावित होगा।”

– मीना कुमारी मिश्रा, डीएफओ, दक्षिण वन मंडल पन्ना।