“गिद्धों” पर अध्ययन के लिए देश में पहली बार की जा रही रेडियो टैगिंग

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पन्ना टाइगर रिजर्व में ऊँचे पहाड़ पर झुंड में बैठे गिद्ध धूप सेंकते हुए।

पन्ना टाइगर रिजर्व में शुरू हुआ टैगिंग का कार्य

डब्ल्यूआईआई (देहरादून) से आई विशषज्ञों की टीम

सभी प्रजातियों के 25 गिद्धों की रेडियो टैगिंग का है लक्ष्य

शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) मध्य प्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व न सिर्फ बाघों बल्कि गिद्धों के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। पर्यावरण के सफाई कर्मी कहलाने वाले गिद्धों पर अध्ययन के लिए यहाँ बाघों की तर्ज पर उनकी भी रेडियो टैगिंग की जा रही है। देश में गिद्धों की रेडियो टैगिंग का यह अनूठा और महत्वपूर्ण प्रयोग पहली बार हो रहा है। इसका उद्देश्य गिद्धों के रहवास, प्रवास के मार्ग एवं पन्ना लेण्डस्केप में उनकी उपस्थिति आदि की जानकारी जुटाना है। जिससे भविष्य में इनके बेहतर प्रबंधन में मदद मिल सके। गिद्धों की रेडियो टैगिंग का कार्य भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून से आए विशेषज्ञों की टीम की देखरेख में किया जा रहा है।
रेडियो टैगिंग हेतु गिद्धों को पकड़ने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व के झालर नामक स्थान में लगाया गया विशाल पिंजरा।
आसमान में ऊँची उड़ान भरते हुए मरे हुए जानवर की गंध सूंघ लेने और उसे देख लेने की गजब की क्षमता वाले पक्षी गिद्ध के प्रवास मार्ग हमेशा से ही वन्यप्राणी प्रेमियों के लिये कौतुहल का विषय रहे हैं। गिद्ध न केवल एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश बल्कि एक देश से दूसरे देश, मौसम अनुकूलता के हिसाब से प्रवास करते है। गिद्धों के रहवास एवं प्रवास के मार्ग के अध्ययन हेतु पन्ना टाइगर रिजर्व द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के विशेषज्ञों की मदद से गिद्धों की रेडियो टैगिंग का कार्य प्रारंभ किया गया है। जिसके अन्तर्गत पन्ना टाइगर रिजर्व में 25 गिद्धों को रेडियो टैगिंग किया जाएगा। पन्ना में गिद्धों की 7 प्रजातियां पाई जाती है। जिनमें से 4 प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व की निवासी प्रजातियां है एवं शेष 3 प्रजातियां प्रवासी हैं।
पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि रेडियो टैगिंग कार्य के लिए भारत सरकार से आवश्यक अनुमति प्राप्त हो चुकी है। रेडियो टैगिंग से गिद्धों के रहवास, प्रवास के मार्ग एवं पन्ना लेण्डस्केप में उनकी उपस्थिति आदि की जानकारी ज्ञात हो सकेगी। जिससे भविष्य में इनके प्रबंधन में काफी मदद मिलेगी। आपने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व अंतर्गत झालर के घास मैदान में यह कार्य प्रारंभ किया गया है। गिद्धों को पकड़ने के लिए वहाँ एक बड़ा सा पिंजरा बनाया गया है। रेडियो टैगिंग कार्य लगभग एक माह में पूरा होगा। क्षेत्र संचालक ने बताया कि देश में यह पहला अवसर है जब गिद्धों के अध्ययन हेतु उनकी रेडियो टैगिंग का कार्य किया जा रहा है। पार्क प्रबंधन इसकी सफलता को लेकर आश्वस्त है एवं यह प्रयोग सफल हो इस दिशा में सभी संभव प्रयास भी कर रहा है। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने उम्मीद जताई है कि भविष्य में रेडियो टैगिंग से प्राप्त जानकारी पन्ना टाइगर रिजर्व ही नहीं बल्कि पूरे देश-विदेश में गिद्धों के प्रबंधन के लिए लाभकारी साबित होगी।
गिद्धों की रेडियो टैगिंग के कार्य के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व को ही आखिर क्यों चुना गया ? इस सवाल के जवाब में क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि पन्ना में टाइगर रिजर्व में गिद्धों की जितनी प्रजातियां पाई जाती हैं, किसी और टाइगर रिजर्व में उतनी प्रजातियां नहीं मिलती हैं। इसलिए पन्ना का चयन इस प्रयोग के लिए किया गया है। निश्चित ही यह हमारे लिए गौरव और हर्ष विषय है।

सैटेलाइट और मोबाइल टॉवर से होगी ट्रैकिंग

पन्ना टाइगर रिजर्व का हिनौता स्थित प्रवेश द्वार। (फाइल फोटो)
वन्य जीवों और पक्षियों के अनुश्रवण हेतु आमतौर पर उनकी रेडियो टैगिंग की जाती है। ताकि उनकी गतिविधियों और व्यवहार पर सतत नजर रखी जा सके। लेकिन गिद्धों के अध्ययन हेतु देश में पहली बार उनकी रेडियो टैगिंग की जा रही है। पन्ना टाइगर रिजर्व में जारी इस अभिनव प्रयोग की सफलता को सुनिश्चित करने के लिए गिद्धों को काफी उन्नत तकनीक के रेडियो टैग लगाए जा रहे हैं। इससे प्रसारित होने वाले संकेत सैटेलाइट और मोबाइल टॉवर के माध्यम से प्राप्त होंगे। उल्लेखनीय है कि पन्ना टाइगर रिजर्व में पाई जाने वाली सभी सात प्रजातियों के गिद्धों की रेडियो टैगिंग की जा रही है। जिसमें तीन प्रजातियां प्रवासी गिद्धों की हैं। हजारों मील लम्बा और बेहद मुश्किल सफर तय करके प्रत्येक वर्ष पन्ना पहुँचने वाले प्रवासी गिद्धों की ट्रैकिंग भी इस रेडियो टैग के द्वारा सुगमता से संभव होने का दावा पन्ना पार्क प्रबंधन द्वारा किया जा रहा है।